सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

पानी और धरती बचाने वाले अब कहां हैं...

आमापारा बाजार के पीछे का तालाब पाटा जा रहा
आर्ट ऑफ लिविंग हो या राजधानी में जल जमीन बचाने में लगी संस्था हो किसी की नजर अभी तक आमापारा बाजार के पीछे सरकारी स्तर पर पाटे जाने वाले तालाब की ओर नहीं है। आसपास के लोग दबी जुबान पर इसका विरोध जरूर कर रहे हैं लेकिन नेतृत्व का अभाव इसे आंदोलन का शक्ल नहीं दे पा रहा है। ऐसे में रजबंधा तालाब या लेडी तालाब की तरह यह कारी तालाब भी सरकार बलि चढ़ जाए तो आश्चर्य नहीं है।
एक तरफ पूरी दुनिया में जल, जमीन और जंगल बचाने का अभियान चल रहा है। छत्तीसगढ क़े मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तक अपने को इस अभियान का हिस्सा मानते हैं लेकिन दूसरी तरफ इसी सरकार के अधिकारी कुछ भू-माफियाओं के ईशारे पर कारी तालाब को पाटा जा रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि पर्यावरण की चिंता में दुबले हो रहे लोगों का ध्यान अभी तक इस तरफ नहीं गया है और भू-माफिया अपना खेल खुले आम खेल रहा है।
आमापारा क्षेत्र में वैसे तो लाईन से पांच तालाब है और इन तालाबों से लगी बेशकीमती जमीनें पहले ही अवैध कब्जे का शिकार है। हांडी तालाब से लेकर करबला तक तालाबों पर निगाह रखने वालों ने अवैध कब्जों के लिए गरीबों का सहारा लिया और फिर खुद ही बिल्डिंग खड़ी कर बेच दी। आमापारा का ऐतिहासिक महत्व है। मंदिरों के अलावा सब्जी बाजार में रोज हजारों लोग आते हैं ऐसे में तालाब को सुन्दर बनाकर अन्य बगीचों में भीड़ कम की जा सकती है। इस मामले में पर्यावरण प्रेमी कब ध्यान देंगे यह देखा है।

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